Thursday, May 7, 2020

अब मैं राशन की क़तारों में नज़र आता हूँ

अब मैं राशन की क़तारों में नज़र आता हूँ
अपने खेतों से बिछड़ने की सज़ा पाता हूँ

इतनी महँगाई के बाज़ार से कुछ लाता हूँ
अपने बच्चों में उसे बान्ट के शरमाता हूँ

अपनी नींदों की लहू पोंछने की कोशिश में
जागते जागते तक जाता हूँ सो जाता हूँ

कोई चादर समझ के खींच ना ले फिर से “ख़लील”
मैं क़फ़न ओढ़ कर फुटपाथ पे सो जाता हूँ

-ख़लील धनतेजवी

Monday, September 5, 2016

ख़त लिखा उसने मुझे


ख़त लिखा उसने मुझे, ख़त में लिखा कुछ भी नहीं

जैसे अब लिखने लिखाने को बचा कुछ भी नहीं !

देर तक एक दूसरे साथ हम चलते रहे,

मैंने सब कुछ सुन लिया उसने कहा कुछ भी नहीं!

अक्स मेरा आईने में अब नहीं अब नहीं आता नज़र,

मेरे उसके दरमियाँ अब फासला कुछ भी नहीं !

इस तरह बैठा है तन्हाई का दामन थाम कर,

जैसे दीवाने का अब इसके सिवा कुछ भी नहीं !

हश्र के दिन भी मिरे हक में ही होगा फैसला,

जानता हूँ प्यार करने की सजा कुछ भी नहीं !

दिल लहू हो, तब ही जलता है हथेली पर चिराग़,

सब्ज़ पत्तों के सिवा वर्ना हिना कुछ भी नहीं !

मैं न कहता था, लकीरों की फकीरी छोड़ दे,

आखरिश देखा, लकीरों से बना कुछ भी नहीं !

मैंने देखा है बियाज़े जिंदगी को गौर से,

सब के हैं इसमें पते, मेरा पता कुछ भी नहीं !

हो अगर रौशन तो बन जाता है, सूरज रात का,

वर्ना ए “सीमाब” मिट्टी का दिया कुछ भी नहीं !

--सीमाब सुल्तानपुरी

Monday, November 24, 2014

उन्हीं के हाथों, आज मैं जलाया जा रहा था

किसी शायर ने अपनी अंतिम यात्रा का क्या खूब वर्णन किया है.....

था मैं नींद में और मुझे इतना सजाया जा रहा था....
बड़े प्यार से मुझे नहलाया जा रहा था....
ना जाने था वो कौन सा अजब खेल मेरे घर में....
बच्चो की तरह मुझे कंधे पर उठाया जा रहा था....
था पास मेरा हर अपना उस वक़्त....
फिर भी मैं हर किसी केमन से भुलाया जा रहा था...
जो कभी देखते भी न थे मोहब्बत की निगाहों से....
उनके दिल से भी प्यार मुझ पर लुटाया जा रहा था...
मालूम नही क्यों हैरान था हर कोई मुझे सोते हुए देख कर....
जोर-जोर से रोकर मुझे जगाया जा रहा था...
काँप उठी मेरी रूह वो मंज़र देख कर.....
जहाँ मुझे हमेशा के लिए सुलाया जा रहा था.....
मोहब्बत की इन्तहा थी जिन दिलों में मेरेलिए....
उन्हीं दिलों के हाथों, आज मैं जलाया जा रहा था!!!

लाजवाब लाईनें

Monday, November 17, 2014

kuch keh ke wo bhooli huyee har baat ka aalam

   Muddat mein wo fir taaza mulaakaat ka aalam
   khaamosh adaaon mein wo jazbaat ka aalam


    alaah re wo siddhat-e-jazbaat ka aalam
    kuch keh ke wo bhooli huyee har baat ka aalam


    aariz se dhalakte huye shabnam ke wo qatre
    aakhon se jhalakta hua barsaat ka aalam

    wo nazron hi nazron mein sawalaat ki duniya
    wo aakhon hi aakhon mein jaw


Jagjit Singh,Chitra Singh,Vinod Sehgal, Ram Kumar,Kumar Sanu,Asha Bhosle
 
aabaat ka aalam

Ujale Ujale Phool Khile The Bilkul Jaise Tum Hanste Ho,

Mujhse Bichad Ke Khush Rahate Ho
Meri Tarah Tum Bhi Jhoothe Ho,


Ek Tahanee Par Chaand Tikaa Tha
Main Yeh Samajhaa Tum Baithe Ho,


Ujale Ujale Phool Khile The
Bilkul Jaise Tum Hanste Ho,


Mujh Ko Shaam Bataa Deti Hai
Tum Kaise Kapade Pehane Ho,


Tum Tanaha Duniyaa Se Ladoge
Bachcho Si Baatein Karate Ho


Lyrics: Bashir Badr      
BY: Jagjeet Singh 

Monday, October 20, 2014

Ab to marne ki dua de zindagi ae zindagi



Jeete rehne ki saza de, zindagi ae zindagi
Ab to marne ki dua de zindagi ae zindagi

Main to ab uqta gaya hoon kya yahi hai qayanat
Bas ye aaina hata de zindagi ae zindagi

Dhoondne niklaa tha tujhko aur khud ko kho diya
Tu hi ab mera pata de zindagi ae zindagi

Yaa mujhe ehsaas ki ees qaid se kar de rihaa
Warna deewana banaade zindagi ae zindagi

Golden Voice : Jagjeet Singh
By: Zaka Siddiqui

Tuesday, October 7, 2014

आखरी मुलाकात के भी हकदार नहीं थे हम ।।

एक तू मिल जाता, इतना काफ़ी था ।
सारी दुनियाँ के तलबगार नहीं थे हम ।।

इस हद तक तो गुनहगार नहीं थे हम ।
आखरी मुलाकात के भी हकदार नहीं थे हम ।।

मेरे चेहरे पर सिर्फ़ तुम्हे पढ़ा लोगों ने ।
आखिर किताब थे, अखबार नहीं थे हम ।।

अपने हिस्से की ठोकरें हमने खुद ही खाई हैं ।
पत्थर ही थे, दीवार नहीं थे हम ।।

यूँ तो कीमत भी अदा कर सकते थे मगर ।
चाहने वाले थे, तेरे खरीददार नहीं थे हम ।।

तुझसे बिछड़ने को तैयार नहीं थे हम ।
सही कहते हो वफादार नहीं थे हम ।।

एक तू मिल जाता, इतना काफ़ी था ।
सारी दुनियाँ के तलबगार नहीं थे हम ।।

कुमार शिकस्तगी ।।

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