Wednesday, October 23, 2013

कमबख़्त फिर फिर मिलता है हर साल मुझे

.इतनी नरमाई से न पेश आ.. बस तोङ डाल मुझे.. !!
..ए मेरे संग-तराश.. बुत की शक्ल मे न ढ़ाल मुझे.. !!

..ये तेरी ज़िद मुझे खुदा न कर दे.. डरता हूँ.. !
..मै पत्थर हूँ.. पत्थर की तरह संभाल मुझे.. !!

..बाज़ारों की दुनियाँ मे अना लिए फिरता हूँ.. !
..न जाने कौन दे गया है यह कमाल मुझे.. !!

..अब तो बाज आये यह बिछङने का मौसम.. !
..कमबख़्त फिर फिर मिलता है हर साल मुझे.. !!

..वहाँ तुझे जवाबों की तलाश है.. सब्र रख.. !
..यहाँ ढून्ढ रहे है कई सवाल मुझे.. !!

..इतनी नरमाई से न पेश आ.. बस तोङ डाल मुझे.. !!
..ए मेरे संग-तराश.. बुत की शक्ल मे न ढ़ाल मुझे.. !!

..कुमार शिकस्तगी.. !!

संग-तराश - पत्थर काटने या गढ़ने वाला
अना - आत्म सम्मान

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