Thursday, May 15, 2014

क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..

बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ।।

ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने


न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.
एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..


वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!
सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..


पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!


सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब....
बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |


Zanaab-e-Ghalib Ki Qalam se 

2 comments:

Rahul Sharma said...

realy amazing vinay bhai...

Rahul Sharma said...

It's really amazing vinay bhai...
ab wo bachpan ka itwar nahi aata...

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