Monday, February 11, 2013

हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता


सब के कहने से इरादा नहीं बदला जाता
हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता 

हम तो शायर हैं सियासतनहीं आती हमको
हम से मुंह देखकर लहजा नहीं बदला जाता 

हम फकीरों को फकीरी का नशा रहता है
वरना क्या शहर में शजरा नहीं बदला जाता

ऐसा लगता है के वो भूल गया है हमको
अब कभी खिडकी का पर्दा नहीं बदला जाता

जब रुलाया है तो हसने पर ना मजबूर करो 
रोज बीमार का नुस्खा नहीं बदला जाता

गम से फुर्सत ही कहाँ है के तुझे याद करू 
इतनी लाशें हैं तो कान्धा नहीं बदला जाता 

उम्र एक तल्ख़ हकीकत है दोस्तों फिर भी 
जितने तुम बदले हो उतना नहीं बदला जाता 

-- Munawwar Rana

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