आसमान जो इतना बुलंदी पर इतराता है
भूल जाता है ज़मीन से ही नज़र आता है
जो भी आता है अपनी तरह बहलाता है
प्यास का है की बढ़ता ही चला जाता है
बदगुमानी को तो नहीं छोड़ते हो मुझ पर
बात कीजिये तो कोई हल भी निकल आता है
तू ही चाहे तो रोक ले बढ़कर वरना
मेरे जाने से तेरे शहर का क्या जाता है
-- Waseem Barelvi
No comments:
Post a Comment