Monday, February 11, 2013

आसमान जो इतना बुलंदी पर इतराता है


आसमान जो इतना बुलंदी पर इतराता है
भूल जाता है ज़मीन से ही नज़र आता है

जो भी आता है अपनी तरह बहलाता है
प्यास का है की बढ़ता ही चला जाता है

बदगुमानी को तो नहीं छोड़ते हो मुझ पर
बात कीजिये तो कोई हल भी निकल आता है

तू ही चाहे तो रोक ले बढ़कर वरना
मेरे जाने से तेरे शहर का क्या जाता है

-- Waseem Barelvi

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