अजब दुनिया है ना शायर यहाँ पर सर उठाते हैं
जो शायर हैं वो महफ़िल में दरी चादर उठाते हैं
तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कान्धा नहीं देते
हमारे गांव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं
इन्हें फिरकापरस्ती मत सिखा देना की ये बच्चे
जमीं से चुन कर तितली के टूटे पर उठाते हैं
समंदर के सफर में वापसी का क्या भरोसा है
तो आये साहिल खुदा हाफिज़ की हम लंगर उठाते हैं
ग़ज़ल हम तेरे आशिक हैं मगर एक पेट के खातिर
कलम किस पर उठाना था कलम किस पर उठाते हैं
बुरे चेहरे के जानिब देखने की हद भी होती है
संभालना आइना कानो की हम पत्थर उठाते हैं
-- Munawwar Rana
1 comment:
NICE
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