Monday, February 11, 2013

हमारे गांव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं


अजब  दुनिया है ना शायर यहाँ पर सर उठाते हैं
जो शायर हैं वो महफ़िल में दरी चादर उठाते हैं

तुम्हारे  शहर में मय्यत को सब कान्धा नहीं देते 
 हमारे गांव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं

इन्हें फिरकापरस्ती मत सिखा देना की ये बच्चे
जमीं से चुन कर तितली के टूटे पर उठाते हैं

समंदर के सफर में वापसी का क्या भरोसा है
तो आये साहिल खुदा हाफिज़ की हम लंगर उठाते हैं

ग़ज़ल हम तेरे आशिक हैं मगर एक पेट के खातिर
कलम किस पर उठाना था कलम किस पर उठाते हैं

बुरे चेहरे के जानिब देखने की हद भी होती है
संभालना आइना कानो की हम पत्थर उठाते हैं

-- Munawwar Rana

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