Friday, May 31, 2013

जो सितारे थे चमकते ही रहे

शेख़ जी अपनी सी बकते ही रहे
वह थियेटर में थिरकते ही रहे

दफ़ बजाया ही किए मज़्मूंनिगार

वह कमेटी में मटकते ही रहे

सरकशों ने ताअते-हक़ छोड़ दी

अहले-सजदा सर पटकते ही रहे

जो गुबारे थे वह आख़िर गिर गए

जो सितारे थे चमकते ही रहे

By Akbar Alahabaadi

1 comment:

Anonymous said...

Awesome dude... Great feelings

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