शेख़ जी अपनी सी बकते ही रहे
वह थियेटर में थिरकते ही रहे
दफ़ बजाया ही किए मज़्मूंनिगार
वह कमेटी में मटकते ही रहे
सरकशों ने ताअते-हक़ छोड़ दी
अहले-सजदा सर पटकते ही रहे
जो गुबारे थे वह आख़िर गिर गए
जो सितारे थे चमकते ही रहे
By Akbar Alahabaadi
वह थियेटर में थिरकते ही रहे
दफ़ बजाया ही किए मज़्मूंनिगार
वह कमेटी में मटकते ही रहे
सरकशों ने ताअते-हक़ छोड़ दी
अहले-सजदा सर पटकते ही रहे
जो गुबारे थे वह आख़िर गिर गए
जो सितारे थे चमकते ही रहे
By Akbar Alahabaadi
1 comment:
Awesome dude... Great feelings
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