जिन्दगी तुझको जिया है कोई अफ़सोस नहीं,
ज़हर ख़ुद मैंने पिया है कोई अफ़सोस नहीं,
मैंने मुजरिम को भी मुजरिम न कहा दुनिया में,
बस यही जुर्म किया है कोई अफ़सोस नहीं,
मेरी किस्मत में जो लिखे थे उन्ही काँटों से,
दिल के ज़ख्मों को सीया है कोई अफ़सोस नहीं,
अब गिरे संग के शीशों की हूँ बारिश ‘फाकिर’,
अब कफ़न ओढ़ लिया है कोई अफ़सोस नहीं,
ज़हर ख़ुद मैंने पिया है कोई अफ़सोस नहीं,
मैंने मुजरिम को भी मुजरिम न कहा दुनिया में,
बस यही जुर्म किया है कोई अफ़सोस नहीं,
मेरी किस्मत में जो लिखे थे उन्ही काँटों से,
दिल के ज़ख्मों को सीया है कोई अफ़सोस नहीं,
अब गिरे संग के शीशों की हूँ बारिश ‘फाकिर’,
अब कफ़न ओढ़ लिया है कोई अफ़सोस नहीं,
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