कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई,
आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई।
सूरज को चोंच में लिए मुर्गा खड़ा रहा,
खिड़की के पर्दे खींच दिए रात हो गई।
वह आदमी अब कितना भला ,कितना पुरखुलूस,
उससे भी आज लीजे मुलाकात हो गई।
रस्ते में वह मिला था मैं बचकर गुज़र गया,
उसकी फटी कमीज़ मेरे साथ हो गई।
नक्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढ़िए,
इस शहर में अब सबसे मुलाकात हो गई।
- निदा फाज़ली।
आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई।
सूरज को चोंच में लिए मुर्गा खड़ा रहा,
खिड़की के पर्दे खींच दिए रात हो गई।
वह आदमी अब कितना भला ,कितना पुरखुलूस,
उससे भी आज लीजे मुलाकात हो गई।
रस्ते में वह मिला था मैं बचकर गुज़र गया,
उसकी फटी कमीज़ मेरे साथ हो गई।
नक्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढ़िए,
इस शहर में अब सबसे मुलाकात हो गई।
- निदा फाज़ली।
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