Monday, August 25, 2014

उस हवेली पे भला कैसे मैं ताला देखूँ..

"रंग दुनियाॅं ने दिखाया है निराला देखूँ
है अँधेरे में उजाला तो उजाला देखूँ

आईना रख दे मेरे सामने आखि़र मैं भी
कैसा लगता है तेरा चाहने वाला देखूँ

कल तलक वो जो मेरे सर की क़सम खाता था
आज सर उसने मेरा कैसे उछाला देखूँ

मुझसे माज़ी मेरा कल रात सहम कर बोला
किस तरह मैंने यहाँ ख़ुद को संभाला देखूँ

जिसके आँगन से खुले थे मेरे सारे रस्ते
उस हवेली पे भला कैसे मैं ताला देखूँ..."

डा कुमार विश्वास

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